नम्रता के आंँसू
स्वतंत्रता के खग
उड़ रहे व्योम में,
देख ये बहेलिया
व्याकुल हुआ मन में,
क्षुधा अब मिटेगी
आज इस तन की ,
उठा कर शस्त्र
दौड़ा पीछे-पीछे,
वृक्ष की ओट से
कर दिया घायल,
गिर गया धरा पर
रक्त से सना हुआ,
प्रश्न यह उसने किया
छिपा क्यों ओट में,
अज्ञानता का सहारा
लिया तुमने भ्रम में,
स्वयं को कर समर्पित
आज इस तन को,
क्षुदा तू मिटा ले
सुन कर यह शिकारी,
रो पड़ा ईश्वर से
वन्दना उसने की,
पर मुझे दे कर
स्वतंत्र मुझे कर दें ।
#..बुध्द प्रकाश