नमाज़ों का पाबंद होकर के अपने
नमाज़ों का पाबंद होकर के अपने
गुनाहों का दामन रफ़ू कर रहा हूं
नए कुछ ख्यालात कागज़ प रख कर
ग़ज़ल से अभी गुफ़्तगू कर रहा हूँ
नज़ीर नज़र
नमाज़ों का पाबंद होकर के अपने
गुनाहों का दामन रफ़ू कर रहा हूं
नए कुछ ख्यालात कागज़ प रख कर
ग़ज़ल से अभी गुफ़्तगू कर रहा हूँ
नज़ीर नज़र