नमन हे गुरु नानक देव।
धन्य हुई भारत की भूमि यहाँ हुए गुरू नानक देव।
सदा आपको शीश नवाते नमन हे गुरु नानक देव।।
अप्रैल पंद्रह साल 1469 था बडा पावन दिन वो।
दिया हमें संत नमन करते हैं बारम्बार उन माँ को।।
नाम नानक थे बचपन से प्रखर बुद्धि के स्वामी।
सांसारिक विषयों से उदासीन भगवत प्राप्ति में थे नामी।।
बालपन में था हुआ विवाह फिर तीर्थयात्रा पडे चल।
उपदेश चार यात्रा चक्र के ‘उदासियों’ करके दिया हल।।
सर्वेश्वर वादी थे पर ईश्वर की उपासना का दिया एक मार्ग।
नारी को दिया बड्डपन और कुरीतियों को कहा भाग।।
अंतिम दिनों में ख्याति बढी विचारों में परिवर्तन हुआ।
रहने लगे परिवार वर्ग के साथ मानव सेवा में समय दिया।।
नगर बसाया करतारपुर नामक बनवाई एक धर्मशाला।
22 सितंबर 1539 हुए विलीन दे प्रेम की माला।।
सदा मानवता का दिया संदेश और प्रेम को दी प्रमुखता।
‘एक ओंकार सतनाम’ देकर नाम दिया प्रभु का था पता।
गुरूबाणी सुनकर आज हम हो जाते हैं खूब धन्य।
चरण पखारे हम उन सतगुरु के उनसा हुआ न कोई अन्य।।
अशोक छाबडा.
गुरूग्राम।