नमन स्वर्ग धरा को
नमन आज उस स्वर्ग धरा की
सोना जिसकी माटी है।
झुकना नहीं जानते हम सब,
बलिदान मेरी परिपाटी है ।
ललकारे जो हमें शत्रु
उसकी गर्दन काटी है ।
नमन आज उस स्वर्ग धरा की
सोना जिसकी माटी है।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र