नमन उस वीर को शत-शत…
बिठाया है जिन्हें सिर पर, वही नीचा दिखाएंगे।
दिया दिल काढ़कर जिनको, वही दिल को दुखाएंगे।
भलाई का भलाई से, नहीं मिलता यहाँ बदला।
जिन्हें अपना बनाओगे, वही चूना लगाएंगे।
दिवस उजले न होते तो, न लगती रात भी काली।
यहाँ सबको सदा दूजी, लगा करती भरी थाली।
भरी गगरी चले चुप-चुप, करे पर शोर कुछ खाली।
जहाँ पर फूल खिलता है, लचकती है वहीं डाली।
हुनर सब देश का मेरे, पलायन पर तुला है क्यों ?
कमाने चंद डॉलर ये, वतन को तज चला है क्यों ?
जहाँ पनपे हसीं सपने, जमीं वो भूल जाओगे ?
हवाओं से बगावत का, जहर मन में घुला है क्यों ?
सिखाया सब जिन्हें हमने, हमें वो सीख देते हैं।
हमारे माल पर पलकर, हमें ही भीख देते हैं।
समझ पाए न हम आखिर, मिली संगत उन्हें कैसी?
किसी से दौड़कर मिलते, हमें तारीख देते हैं।
लुटा दे जान माटी पर, नमन उस वीर को शत-शत।
कलेजा चीर दे शठ का, नमन उस तीर को शत-शत।
भड़क कर जोश में आकर, नहीं जो होश खोता है।
डिगा पाए न दुश्मन भी, नमन उस धीर को शत-शत।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )