नभ से बरसता बादल
नभ से बरसता बादल
दिल को करता पागल
बरसात बरसी हर बूँद
आँखें हो जाती हैं मूँद
दिल में होती सिरहन
मन में होती है विरहन
मचल उठता तन बदन
हिलोरे खाए चंचल मन
विरहिणी की बुरी व्यथा
याद आती रमण कथा
टूटता है पूरा अंग प्रत्यंग
व्याकुल उड़ाने को पतंग
शीत हवा का सर्द झोंका
पास गुजरता उस मौका
वियोगी ढूँढता है संयोगी
जो होता ईश्क का रोगी
सर्द बूँदे करती हैं प्रहार
होती हैं उर के आर पार
सोनजुही बन ढूँढे पनाह
चिप जाए जो मिले पनाह
नहीं देखती कैसा सहारा
हो बेसहारा का सहारा
जो शांत करे तन अगन
विचलित मन हो मगन
सघन बरसात थम जाए
अरमान मंजिल चढ़ जाए
पूरी हो जाए जब बरसात
मिले खुशियों की सौगात
हर बूँद का होता है यह रंग
पूरी हो दिल की उमंग तरंग
जब थम है जाती वर्षा बूँद
खुलती आँखे जो थी मूँद
सुखविंद्र सिंह मनसीरत