नफ़रत भर गई है, रोम रोम नकारता।
नफ़रत भर गई है, रोम रोम नकारता।
फिर भी न जाने क्यूं, दिल तुझे पुकारता।
धर्म कहता है तुझे मैं, कैसे अकेला छोड़ दूं।
दिमाग के बहकावे में, मूंह कैसे मोड़ लूं।
दिया था साथ तूने ही, मेरी गरीबी में।
आज अकेला छोड़कर, तुझे गरीब कैसे कर दूं।
श्याम सांवरा….