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20 Feb 2024 · 1 min read

नफ़रत कि आग में यहां, सब लोग जल रहे,

नफ़रत कि आग में यहां, सब लोग जल रहे,
यूॅं ही सिसक-सिसक कर,रिश्तें है चल रहें।१।

आंसू भी आंखों के अब,प्यारे से लग रहें,
शक्ले बदल के अपने, अपनों को छल रहें।2।

आबों हवाॅं है बदली यूॅं ,जो अपने शहर कि,
हर आस्तीन मे अब, विषधर है पल रहे।3।

जंगल उजाड़ कर हो, बारिश को ढूंढते ,
मरुथल किए धरा को,वो लोग खल रहें।४।

उम्मीद क्यूॅं करते हो , इन ना-मुरादो से,
दहलीज बांटते जो,वो लोग सल रहें।५।

इंसानियत के कातिल सभी, ऊंचे मुकाम पर,
यही सोच कर है आज सभी हाथ मल रहें।६।

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