नफ़रतों में घुल रही ये जिंदगी है..!
नफ़रतों में घुल रही ये जिंदगी है,
अन्जुमन में हर तरफ बस तीरगी है।
पूछता मैं फिर रहा हर इक बशर से,
मुफ़लिसी में कैद क्यों लाचारगी है।
राह चलते कर रहे जो बदसलूकी,
मान लो कहना यही आवारगी है।
ब़ेरहम क्यों कह रहा मुझको ज़माना,
ख़ून में मेरे वफ़ा है सादगी है।
आशियाना बन चुका है दिल ये’ तेरा,
उम्र भर अब तू ही मेरी बंदगी है।
हो गई हमको मुहब्बत आइने से,
मर्ज जिसको सब बताते दिल्लगी है।
लाश ज़िन्दा हो गये हम बिन तुम्हारे,
आह दिल में है लबों पर तिश्नगी है।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊