नफरत
नफरती नारों के बोल उठे हैं, मजहबी गलियारों से
मुल्क विरोधी तकरीर चली है, फिर जिहादी नारों से
शैतानों की खिदमत करने, लेकर खंजर निकले हैं
देखो मस्जिद के बाहर भी, पत्थर लेकर निकले हैं
दरगाह के खादिम ने, नफरत की मजलिश निकाली है
मजहबी आंच में अमन की रोटियां जला डाली है
ये हैं इनके चाल घिनौने…समझो इनकी मक्कारी
मुल्क जलाकर खाक न कर दे, नफरत की ये चिंगारी
होशियार रहना ही होगा हमको, इन मजहबी गद्दारों से
नफरती नारों के बोल उठे हैं, मजहब के गलियारों से
नफरत की आग लगी हो, तो हम पानी कैसे डालें
अपने ही घर में हम, ये कट्टरपंथी कैसे पालें
आज पूछती कलम हमारी, तीखे प्रश्न तलवारों से
नफरती नारों के बोल उठे हैं मजहब के गलियारों से
शरिया बड़ा या संविधान पूछो मजहबी ठेकेदारों से
नफरती नारों के बोल उठे हैं आतंकी गलियारों से
सुनील पुष्करणा