नफरत करते हो?
नफरत करते हो?
कोई बात नहीं!
शौक से करो;
मगर किससे?
मैं बताता हूँ!
घृणा से करो,
प्रेम से नहीं!
अश्लीलता से करो,
शीलता से नहीं।
क्रूरता से करो,
दयता से नहीं;
क्रोध से करो,
क्षमा से नहीं,
लोभ से करो,
इच्छा से नहीं;
मोह से करो,
बंधन से नहीं;
अनीति से करो,
नीति से नहीं;
कामांधता से करो,
काम से नहीं;
कुवाणी से करो,
वाणी से नहीं,
कुकर्म से करो,
सुकर्म से नहीं।
असत्य से करो,
सत्य से नहीं;
अतिभोग से करो,
भोग से नहीं;
अपशब्द से करो,
वाचालता से नहीं।
अज्ञान से करो,
ज्ञान से नहीं;
आ जाए समझ तो बताना सखा
नफरतें सही हैं
अगर हैँ उचित
जो ले जाए सन्मार्ग को,
तो वो नफरतें करो
मगर भटक जाए पथ
तो वो मंजिल ही क्या,
जहाँ साज न हो
तो वो महफिल ही क्या;
उन राहों पर चलना सही नहीं
अगर राह वे नेक न हो,
वो ‘हंस’ ही कहाँ भला,
जिसमें नीर-क्षीर विवेक न हो।
सोनू हंस