नफरत इंसानो का सबसे प्रबल गुण
इंसानी समाज का निर्माण एक दूसरे के प्रति लगाव से हुआ है, एक दूसरे की जरूरत से हुआ है, एक दूसरे के प्रति प्रेम से हुआ है। इसके बाबजूद भी इंसानी समाज में प्रेम का हिस्सा उतना नही है जितना हिस्सा एक दूसरे के प्रति नफरत का है, घृणा का है, विद्वेष का है। अगर आकंड़ों के आधार पर बात करें तो विस्व के सौ प्रतिशत इंसानी समाज में प्रेम जहां पचास प्रतिशत से भी कम है वहीं नफरत का हिस्सा पचास प्रतिशत से बहुत ज्यादा होगा। इस सबके साथ ही इंसान आपस में अपनी एक दूसरे के प्रति नफरत,घृणा,विद्वेष को जितनी कुशलता, सीघ्रता और जितनी बैबाक़ी से जाहिर करते है शायद उसके दसवें हिस्से का भी प्रयोग वो एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम को अपने लगाव को जाहिर करने में भी नही करते।
इंसान को इस ब्रह्मांड का एवम इस पृथ्वी जगत का सबसे बुद्धिशाली जीव माना जाता है, जिसने प्रकृति को भी अपने अनुसार ढलने को मजबूर किया है और पृथ्वी के अंदर एवम बाहर उन छुपे रहस्यों को भी जबरदस्ती उजागर किया है और प्राप्त किया जिन्हें अगर इंसान जानवर होता तो पृथ्वी कभी उजागर नही करती। इसके बाबजूद भी प्रेम के स्तर पर इंसान जानवरों से कई गुना पीछे है। आंकड़ा के आधार पर कहा जाय तो जानवर के अंदर प्रेम की भावनाएं 99 प्रतिशत होती है और नफरत की भावनाएं मात्र एक प्रतिशत ही पायी जाती है, यही कारण है कि हाथी के साथ हिरन,खरगोश एवम अन्य जानवर भोजन करते एवम रहते हुए आसानी से देखे जा सकते है बिना किसी भेदभाव के बिना किसी नफरत के एक साथ कहते हुए,सोते हुए और विचरण करते हुए। अगर शेर या मांसाहारी जानवर भी किसी का शिकार करते है तो वो उससे नफरत नही करते बल्कि वह उनका भोजन होता है।
इंसानों के स्तर पर नफरत की भावना इतनी ज्यादा प्रबल है कि यह हर देश मे,हर प्रान्त में, यहाँ तक कि हर घर में भी अत्यधिक मात्रा में पायी जाती है। इंसानों ने स्वयम की जरूरत के लिए ही समाज का विकास किया किन्तु इसी विकास के साथ ही नफरत का विकास कहीं अधिक ज्यादा हुआ। अगर परिभाषाओं के स्तर पर देखें तो धार्मिक नफरत, जातिगत नफरत, रंगभेदगत नफरत, समूहगत नफरत,जन्मस्थानगत नफरत,देश-प्रान्त-क्षेत्रगत नफरत,सांस्कृतिक नफरत आदि आदि। इतने प्रकार की नफ़रतें है जितने प्रकार की इंसानों की जाति नही।
धार्मिक नफरत, सबसे खतरनाक और सबसे प्राचीन नफरत है। इस नफरत के आधार पर प्राचीन समय से नए-नए राज्य बने है और समाप्त हुए है। यह नफरत ऐसी है इसका प्रयोग कर कुछ ही समय में हजार-लाख-करोड़ों लोगों को एक साथ एक जगह इकट्ठा किया जा सकता है और इंसानियत के सामने महाप्रलय लायी जा सकती है। सबसे ज्यादा शासक एवम धार्मिक लोगों ने इसका प्रयोग किया है और करते भी रहते है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि धार्मिक नफरत के अंतर्गत एक ही धर्म के लोगों में भी कर्मकांडों के स्तर पर उतनी है गहन नफरत पायी जाती है जितनी दो या अधिक धर्मो के लोगों में आपस मे पायी जाती है। जैसे सिया-सुन्नी, कैथोलिक-प्रोटेस्टेंट,हीनयान-महायान,मूर्तिपूजक-आर्य समाजी आदि-आदि।
जातिगत नफरत में भी एक ही धर्म के लोग अपने ही धार्मिक मतालम्बियों से जातिगत भेद करके एक दूसरे से नफरत करते है। इसप्रकार की नफरत भारत देश मे सबसे ज्यादा प्रबल है। भारतीय समाज मे जातिगत नफरत इंसानों के शोषण के एक हथियार के रूप में प्रयोग होती रही है। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारतीय समाज मे जातिगत नफरत व्यक्ति के जन्म से ही प्रारंभ हो जाती है और यह इतनी प्रबल है कि व्यक्ति अमीर-शिक्षित एवम शक्तिशाली होने के बाबजूद भी इस नफरत से दूर नही हो पाता और ऐसा कोई भी तरीका नही होता जिससे व्यक्ति अपनी जाति बदल लें और इस नफरत से छुटकारा पा ले। जबकि कोई भी व्यक्ति अपना धर्म आसानी से बदल सकता है किन्तु जाति कभी नदी बदल सकता।
रंगभेद नफरत भी पूरे विस्वभर में छाई हुई है। रंग के आधार पर जैसे गोरी जाति, काली जाति, पीली जाति के लोग। पश्चिमी देशों में रंगभेद नफरत बहुत ज्यादा है। जिसमे काले और गोरे लोगों के बीच नफरत सांप और इंसान के बैर जैसी है। रंगभेद नफरत इतनी प्रबल है कि गोरिजाति के लोग काली जाति के लोगों को इंसानों का दर्जा ही नही देते उनको जानवर और अपना गुलाम मानते हैं।
समूहगत नफरत में एक जाति समूह दूसरे जाती समूह से भेद करता है। जैसे अफ्रीकी जाति समूह,एशियाई जाति समूह, यूरोपियन-अमेरिकन-लेटिन जाति समूह। ऐसी ही नफरत कबीलों के स्तर पर भी पायी जाती है।
देश-प्रान्त-क्षेत्रगत नफरत, इसप्रकार की नफरत सीढ़ीनुमा नफरत है जिसमे जैसे- जैसे सीढ़ी चढ़ते जाते है नफरत का नाम बदलता जाता है किंतु उसका प्रकार एक ही रहता है। जैसे क्षेत्र स्तर पर मैदानी क्षेत्र-पहाड़ीक्षेत्र-समुद्री क्षेत्र के लोग। इसके बाद प्रांतीय स्तर पर एक प्रान्त के लोग दूसरे प्रान्त के लोगों से और देश स्तर पर नफरत तो राष्ट्रवाद के नाम से विख्यात है।
सांस्कृतिक स्तर पर भी नफरत बहुत ही सूक्ष्म और बहुत ही प्रबल है। सास्कृतिक स्तर की नफरत के भी कई भाग है जैसे भाषा
के स्तर पर नफरत, खान-पान के स्तर पर नफरत जैसे शाकाहारी-मांसाहारी, रहन-सहन के स्तर पर नफरत, शिक्षा के स्तर पर नफरत इत्यादि।
इन सबके साथ ही लिंग आधारित नफरत भी उतनी ही है जितनी अन्य। पुरुष लिंग स्त्री लिंग को हीन दर्जे का दोयम व्यक्ति समझता है। जिसके कारण महिलाओ का विकास और समाज मे भागीदारी उतनी नही हो पाई जितनी पुरुषों की हुई।
इसप्रकार इंसानी समाज मे इतने प्रकार की नफरत है कि जिनको आकंड़ों के आधार पर गिनाना बिल्कुल भी आसान नही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इंसान मंगल ग्रह और ब्लैक होल के प्रश्न को हल करके की दहलीज पर पहुँच चुका है जो पृथ्वी से अरबो किलोमीटर दूर है किंतु नफरतों के इस प्रश्न का हल इंसानों के पास आज भी नही है जो इंसानी छाया बनकर हर समय उसके साथ रहता है। और अगर यह प्रश्न हल नही होता तो इंसानी समाज का हर विकाश फिर चाहे वह वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक ही क्यों ना हो सब बेकार है।