नन्हे पांव
तपती शड़क है और पांव हैं नन्हें कोमल से
मंजिल है अभी दूर छांव नजरों से ओझल से
कि चल पड़े हैं कुछ लोग शहर से गांव की ओर
मिल जाय कहीं शायद जो अच्छे दिन है ओझल से
फूलों के इस सफ़र पे भी हंस रहें हैं चंद मरे लोग
दिल नहीं सीने में जिनके और आंखें है बोझिल से
काश बरस जाय अब अब्र इन आखों की नमी लेके
फूलों,कलियों को जाना है दूर लेकर बदन कोमल से
~ सिद्धार्थ