नन्हें बच्चे को जब देखा
नन्हें बच्चे को जब देखा
चंद सिक्कों के साथ !
चहक रहा था नन्हा बचपन
मिली हो ज्यूँ सौगात !
सिक्का फिसला दूर जा गिरा
पीछे नन्हीं जान!
सिक्का ही अब उसको लगता
जीवन की पहचान!
कभी उठाता कभी गिराता
रहा नींद भर साथ !
इतनी कसकर बांधी मुट्ठी
छुड़ा न पाए हाथ!
छला गया फिर भोला बचपन
सिक्कों में बस गई जान !
मन आहत हो रहा देखता
खोता बचपन पहचान !
@सुस्मिता सिंह ‘काव्यमय’