नन्हें फूलों की नादानियाँ
गुलशन को आग के हवाले करके खुश हो जाते हैं,
नन्हें फूलों की नादानियों पर मद-मस्त हो जाते हैं I
फूलों की नगरी में क्यों एक खामोसी छाई हुई ?
नन्हें फूलों के ऊपर एक धुंध सी क्यों छाई हुई ?
तूफ़ान की आहट से पत्तियां क्यों सकपकाई हुई ?
खौफ-डर से बगिया की कलियाँ क्यों थर्राई हुई ?
गुलशन को आग के हवाले करके खुश हो जाते हैं,
नन्हें फूलों की नादानियों पर मद-मस्त हो जाते हैं I
“ फूलों की नगरी ” में काँटों का कारोबार बेइंतहा चमकने लगा ,
प्यारे गुलशन में “नन्हीं कलियों ”को तोड़ने का काम बढ़ने लगा,
नफरत की चौखट पर ” इंसानियत ” का जनाजा निकलने लगा,
“नेक बन्दा” फूलों की सलामती की दुआ मालिक से करने लगा I
गुलशन को आग के हवाले करके खुश हो जाते हैं,
नन्हें फूलों की नादानियों पर मद-मस्त हो जाते हैं I
न ठुकराओं फूलों को जिनसे महकता गुलशन सारा,
जिनके पूर्वजो ने “खून”से सींचा यह गुलशन हमारा ,
अगर छोड़ गए “ गुलशन ” को न लौटेंगे कभी दुबारा,
दौलत के खेल में अकेला रह जायेगा गुलशन बेचारा I
गुलशन को आग के हवाले करके खुश हो जाते हैं,
नन्हें फूलों की नादानियों पर मद-मस्त हो जाते हैं I
प्यार के बदले हमने “नफरत का पौधा” रोपना शुरू कर दिया ,
दी गई “श्वांस”, के बदले उसको बाँटने का काम शुरू कर दिया,
“ हम एक हैं ” का नारा देकर उसे तोड़ने का इंतजाम कर लिया,
“राज” ने रूख देखकर “कलम” को पेन कहना शुरू कर दिया,
गुलशन को आग के हवाले करके खुश हो जाते हैं,
फूलों को नस्लों में बाँटकर माला की बात बताते हैं,
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[ उपरोक्त कविता मेरे वतन को समर्पित है जिसके बच्चों के लिए मेरा जीवन कुर्बान है I ]
देशराज “राज”