नन्हीं का संदेश
* नन्हीं का संदेश*
ऐ ढलते सूरज जा,
संदेश दे मेरी मां को ।
अंधियारों से डरती हूं ,
भेज दे मेरी मां को ।।
देखूं उसका मुखड़ा ,
वो खूबसूरत होगी ।
मुस्कान होगी होठों पर,
देवी सी सूरत होगी ।।
पूछ लेना तू ,
उसे मेरी जरुरत होगी।
आंसू होंगे आंखों में ,
दिल में मेरी चाहत होगी ।।
मीठा होगा दूध ,
वो ममता की मूरत होगी ।
फटती होगी छाती ,
मिलने की हसरत होगी ।।
अपनी मैया को मैं ,
देख नहीं पायी ।
जब आंखें खोली तो,
विरानी थी छाई ।।
आशंकित है मन मेरा,
कैसी होगी मेरी माई ।
क्या बात हुई जाने ,
वो लौट के ना आई ।।
जाने वो कहां खोई,
अब ढूंढ दे मेरी मां को ।
अंधियारों से डरती हूं ,
भेज दे मेरी मां को ।।
इन सूनी आंखों से ,
राहें तकती हूं मैं।
कहीं टूट नहीं जाऊं ,
हिम्मत रखती हूं मैं ।।
भौंहें न बनाई मां ,
काजल भी नहीं डाला ,
लोई न करे कोई ,
और तेल नहीं डाला ।।
मैं भूख से आहत हूं ,
जम गई होंठ पर पपड़ी ।
ना घुट्टी है ना दूध ,
चुभ रही पीठ पर लकड़ी ।।
आशा का दामन थामे,
लेटी हूं झाड़ी में ।
मां मुझको ले जाएगी,
आएगी गाड़ी में ।।
ऐ चिड़िया! चुप हो जा !
थोड़ी सी आहट ले लूं ।
आ जाए मेरी मां !
तो राहत मैं ले लूं ।।
कुछ सांसें बाकी हैं ,
मिलने दे मेरी मां को ।।
अंधियारों से डरती हूं,
भेज दे मेरी मां को ।।
ऐ कांटे! चुभना छोड़ ,
कोमल है तन मेरा ।
मां खून देख घबराएगी ,
व्याकुल है मन मेरा ।।
धरती मां ! मुझे सम्भाल ,
जब तक मेरी मां आए ।
छाया दे थोड़ी सी ,
ये धूप मुझे झुलसाए ।।
ऐ चींटी ! मेरी बहना !
मत काट मुझे ऐसे ।
तू सुन मेरा कहना ,
तुझे डांट पड़ेगी मां से ।।
प्यारी- सी सूरत मेरी ,
अब मुरझाती जाए ।
थोड़ा सा दम ले लूं ,
जाने वो कब आ जाए ।।
ऐ रूह मेरी !! तू रुक ,
छू लेने दे मेरी मां को।
अंधियारों से डरती हूं,
भेज दे मेरी मां को ।।
इंतजार की इंतहा देखिए…………
पैदा होते ही जंगल में फेंक दी गई नन्हीं की…….
मेरी पुस्तक “चीत्कार उठी किलकारी”
का एक भाग
विमला महरिया “मौज”