नन्हा मित्र
नन्हा-सा पौधा था,
खुशी उतनी मिलती रही,
शाखाऐ जितनी बढ़ती चली,
दूरियां उतनी चढ़ती रही ,
डाल-डाल पर फल निकले ,
पात-पात हरे-भरे ,
रोपा था बीज जहां ,
पाया इतना वृक्ष बड़ा ।।१।
काटने को है तैयार ,
अज्ञानता का यह संसार ,
फल फिर भी तो देता हूं ,
क्या कुछ तुझसे लेता हूं ,
जीवन तेरा मुझसे जुड़ा ,
फिर मुझसे क्यों तू दूर मुड़ा ,
प्रकृति से तू है बना ,
संरक्षण है जीवन यहां ।।२।