नन्हा बालक
बरसात का मौसम जब आता है सबके चेहरे पर खुशी लेकर आता है पड़ती है जब नन्ही नन्ही फुहारे तो मन प्रफुलित हो जाता है ना जाने क्या-क्या सपने सजा जाता है ।
बच्चों से लेकर नौजवानों तक का ,मन हर्षित कर जाता है
मगर पूछो उस नन्हे बालक से ,बरसात का मजा जिसे मिली है इसकी सजा ,जब गिरी होगी उसके घर की दीवारें तो कहां वो रात बिताता होगा। खुले आसमान के नीचे सोने को अपना नसीब कहता होगा । क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा उस बरसात से ये पूछता होगा। देखता होगा जब आसमान की तरफ तो मेघों से ये कहता होगा आओ और खूब बरसो, मेरे घर में अब छत नहीं तुम्हें रोकने वाला वहां अब कोई ना होगा ।
मैं भी मजा लूंगा अब इस बरसात का मेरे पास खोने के लिए अब कुछ ना होगा
ना डाटेगी अब मां मुझे बाहर जाने पर, अब तो खुला आसमान ही हमारा आशियाना होगा ।
बरसों मेघा अब जी भर के बरसो तुम्हें रोकने वाला अब मेरा घर ना होगा।