नदी जैसे बहना (ग़ज़ल)
ग़ज़ल
चुप हूँ चुप ही है रहना
क्या सुनना अब क्या कहना
मेरी आदत है यारो
एक नदी जैसी बहना
जब तुम पत्थर जैसे हो
सब बेकार है अब कहना
हमको आई रास यही
अपनी मस्ती में रहना
कितना प्यार उमड़ता है
मिलते जब भाई-बहना
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़, हरियाणा