नदियों में बहता पानीू
नदियों में बहता पानी
देता यह सीख पुरानी
निज वेग में रहो बहते
बनेंगे बाधारहित रास्ते
जो भी बाधा है आती
नदी नहीं हैं घबराती
पत्थर,पहाड़ी है आती
रास्ता अपना है बनाती
जो भी उस आड़े आए
निज संग बहा ले जाए
पर्वतों से आ निकलती
मैदानों पर आ मिलती
शांत मौन बहती जाए
ना कोई शोर है मचाए
गर्मी को है दूर भगाए
प्यासों की प्यास बुझाए
पंछी होता या कोई जीव
नील नीर देख हो अधीर
कहीं तल ऊपर दिखता
कहीं सिरा नहीं दिखता
दूर से देखो खड़ा दिखता
पर नीर सदा रहे बहता
फसलें तरोताजा करता
पानी की है प्यास बुझाता
बतख,बुगले रहें हैंं तैरते
जल जीव रहें सदा रैंगते
नदियाँ हमारी हैं अनमोल
बेशकीमती,ना कोई मोल
अमूल्य निधि है खजाना
प्रकृति का उपहार पुराना
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली