नदिया हूँ
मैं गीतों की प्रसव वेदना झेल चुकी हूँ
नदिया हूँ
पर्वत से चल
सागर से पहले कहाँ रुकी हूँ
राह रोकते
पथ के शैल और गिरि कानन
भावों के प्रवाह में बहता
महक रहा गीतों का मधुवन
कंठ-कंठ से रिसती धारा
सृजन सुखी हूँ
सुमन-सुमन बिखरे पराग कण
हैं मन भावन
मादकता छलकाता
गीतों का मधु सेवन
गीतों में आकंठ डूब मैं बहक चुकी हूँ
छंद राग लय ताल
छेड़ दो तुम भी आओ
इस मधुवन की मादकता को
चलो मीत कुछ और बढ़ाओ
हुई बाँवरी कहते हो
मैं अश्रु धुली हूँ