नदिया चंचल
नदिया चंचल,
न हो उच्छृंखल।
कल-कल करती नाद,
धीरे बहो।
सँभालो अपना वेग,
न दिखे लहरों में उद्वेग।
रख नियंत्रण संवेगों पर,
तीरे बहो।
वेगवती तुम नहीं इतराना,
बहुत दूर तक तुमको जाना।
करना है तय लम्बा सफर,
हद में, सुनीरे रहो।
असंयमित हो नहीं तोड़ना कगार,
बिगड़ेगा रूप आयेगी बाढ़।
बह जायेंगे समृद्धि-संस्कृति-संस्कार,
न हो उद्वेलित, धीरे रहो।
जयंती प्रसाद शर्मा