नदियाँ
नदियों का देख रौद्र रूप,
आज हम सब हाहाकार मचाते हैं,
नोचकर नदियों की सुंदरता को,
आधुनिकता की ओर आकृष्ट होते जाते हैं |
उफान पर हैं सारी नदियाँ,
कर रही हैं सृष्टि के विनाश की तैयारी,
विनाशक हुआ नदियों का ममतामयी रूप,
क्यों इतना बदल गया नदियों का स्वरुप ?
पोषणमयी व रक्षक कही जाने वाली नदियाँ,
हो गई कैसे विकराल व क्रूरता से भरपूर ?
तबाही मच गई है चारो ओर,
नदियाँ दिखा रही अपना विध्वंसकारी रूप |
देखे तो मानव का स्वार्थ है इसका इंतजार,
दानवता को पकड़ किया नदियों का संहार,
बहुतायत पेड़ काटे व बारूद से पहाड़ उड़ाएँ,
कंक्रीट का वन तैयार कर कारखाने लगाएँ |
हर ओर नदियों को बचाने का शोर गूँज रहा,
मानव का भविष्य पतन की गर्त की ओर चला,
अगर अब भी कुछ न किया तो हो जाएगा नदियों का अंत,
प्रलयकाल समक्ष खड़ा तो कर लो कुछ न कुछ जतन ।