नदियाँ बीच अनेक
********नदियाँ बीच अनेक********
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राहें बेशक अलग हैं ,मंजिल तो है एक
सागर में जैसे मिले ,नदियाँ बीच अनेक
भांति भांति के पथ यहाँ,उद्देश्य हैं समान
तीर चाहे नही चले, रखते बीच कमान
राहें बेशक अफ डरे, मन मे ना हो मैल
नजर से नजर चुराये,जिंदगी धक्का पेल
ओरों की जो रीस करे,निज से भी हो दूर
बारम्बार वह है मरे, ना हीं पड़ती पूर
झुके पेड़ को फल लगे, देते ठंडी छाँव
बड़े वृक्ष न काम के, बिकते हैं बिन भाव
महल अटारी देख के,झोंपड़ी मत उजाड़
निज से नीचे देख के,मन में ना हो साड़़
सुखविंद्र कवि है कहे ,नीत में न हो खोट
जीवन में कभी न रुके,कभी न खाए चोट
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)