नत मस्तक हुआ विज्ञान
नत मस्तक हुआ विज्ञान
आज प्रकृति के आगे ,
प्रदूषण की है मार पड़ी
कहाँ जाएँ मनुज अभागे ।
साँस लेना हुआ दूभर
प्राण वायु नखरे दिखाए,
बता दो ऐ दिल्ली हमें
जाएँ तो अब कहाँ जाएँ ।
दूर दूर से आए यहाँ हम
रोजी रोटी कमाने को ,
पर रहना भी है मुश्किल
हवा शुद्ध नहीं जीने को ।
क्या हो भौतिक विकास का
जब पर्यावरण दूषित होगा ,
बीमार मनुजता क्या करेगी
स्वस्थ नहीं तन मन होगा ।
जागो मानुष अब भी जागो
प्रकृति का सम्मान करो ,
वृक्ष लगा सूखी धरती पर
उसका पूर्ण शृंगार करो ।
देगी सुफल उसका तुमको
पीढ़ियाँ तक सुख उठाएँगी ,
हरी भरी होकर ये वसुधा
प्रदूषण मुक्त हो जाएगी ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी सम्भल