नटखटिया दोस्ती
यार दोस्ती भी क्या अजीब रिस्ता है,
साथ-साथ खेलते हैं, हंसते हैं
और फिर जम कर लङते हैं
कौन यह झूठ कहता है कि
दोस्त कभी लङते नहीं
हां लङने के बाद रूठते मनाते भी है,
कभी वो मेरी नहीं सुनता,
कभी मैं उसकी नहीं, फिर
कुछ देर की कलह और
फिर साथ में मुस्कुराते हैं
कभी गले में हाथ डालकर घूमते हैं,
कभी उन्हीं हाथों से एक दूसरे की
टकली बजाते हैं, और फिर
गले लग जाते हैं, कभी एक
सुर में राग खींचते हैं, और
कभी एक दूसरे की टांग,
पर तमाम मतभेद कभी
मनभेद में नहीं बदल पाते,
दोस्ती वो धुन है जिसके सुर,
न तो तानपुरे में समाते हैं,
और न ही ठुमरी, कजरी,
यवन और मेघमल्हार में पूरे आते हैं,
ये धुन तो बस दिल के तानपुरे पर,
भरोसे के राग में ही गाई जा सकती है॥
पुष्प ठाकुर