नज्म
जाज़िब तर्जुमान।
पहली गली में आखरी मकान किसका है?
खुशबूदार हवाओं में फरमान किसका है?
बे-अन्दाज़ा लुभाती है मोतीचूर के लड्डू,
बे-नज़ीर आखिर ये दुकान किसका है?
शामें श्रृंगार की उसने अपनी खुशबू से
ये तोहफे वाला आया गुलदान किसका है?
तबीयत नासाज है कुछ दिनों से उनकी
फिर मधुरमय जाज़िब तर्जुमान किसका है?
नासाफ़ ध्वल दस्ती मेरी सतरंगी हो गई
इस अग्यार शहर में एहसान किसका है?
कोई तो संभाले आकर टूटे हुए दिल को
बे-क़द्र बिखरा हुआ सामान किसका है?
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बे अन्दाज़ा = अन्तहीन, अपार।
बे नज़ीर = अनुपम, जिसके कोई बराबर का न हो।
जाज़िब = मनमोहक, आकर्षक।
तर्जुमान = अनुवादक।
नासाफ़ = गन्दा, अशुद्ध, अपवित्र।
ध्वल = सफेद, श्वेत।
अग्यार = अनजान।
दस्ती = छोटा रुमाल।
Rishikant Rao Shikhare
21-06-2019