नज्म- साँस भी चलती नहीं।
नज़्म- साँस भी चलती नहीं।
लगती है चोट दिल पर तो मिटती नहीं,
दर्दे दिल की दवा भी कहीं मिलती नहीं।
घाव जिस्म के साफ नज़र आते हैं सबको,
पीर दिल में हो तो किसी को दिखती नहीं।
जख्म मिले अपनों से,कभी मिले हैं गैरों से,
निशान जख्मों के कभी भी होते कुदरती नहीं।
बार बार छलनी होता है यह दिल बेचारा,
फिर भी धड़कन इसकी कभी रुकती नहीं।
दफ़न करता है अपने अंदर हर दर्द हँसते हुए,
जानता है दिल,’बगैर उसके साँस भी चलती नहीं’।
By:Dr Swati Gupta