“नजीबुल्लाह: एक महान राष्ट्रपति का दुखदाई अन्त”
90 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति थे नजीबुल्लाह। वे कम्युनिस्ट विचारधारा को मानते थे इसलिए उन्हें सोवियत संघ (USSR, उन दिनों तक रूस के टुकड़े नहीं हुए थे। वह अत्यधिक ताकतवर तथा संगठित रूप से एकजुट था।) का समर्थन था। वैसे तो अफ़ग़ानों की सत्ता से अमेरिका का कुछ ख़ास या सीधा लेना-देना नहीं था, किन्तु सोवियत संघ और उसकी समर्थित कम्युनिस्ट सरकार से पूंजीवादी अमेरिका कभी खुश नहीं था। अतः जिद्दी अमेरिका किसी भी कीमत पर सोवियत संघ को अफ़ग़ानी ज़मीन से खदेड़ना चाहता था और अपना वर्चस्व क़ायम करना चाहता था। अतः उसने तालिबान को मदद करना शुरू कर दिया। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के मजबूत होने के बाद सोवियत संघ की मुश्किल बढ़ी और एक समय के बाद सोवियत सेना वापस लौट गई। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि नजीबुल्लाह को मिलने वाला रूसी समर्थन अत्यधिक कमजोर पड़ गया। अतः सत्ता तलिबानों के हाथ में आते ही नजीबुल्लाह और उसके भाई को दर्दनाक मौत देते हुए 1996 ई. में सरेआम फांसी के फंदे पर लटका दिया।
मोहम्मद नजीबुल्लाह अहमदज़ई का जन्म 6 अगस्त 1947 ई. को गरदेज़, अफ़ग़ानिस्तान में हुआ। इनका दर्दनाक अन्त तालिबानों द्वारा 27 सितंबर 1996 ई. को फाँसी देने से हुआ। राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को, डॉ. नजीब के नाम से भी जाना जाता है, ये एक कम्युनिस्ट अफ़ग़ान राजनेता थे, जिन्होंने आरम्भिक वर्षों में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ द पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के महासचिव के रूप में कार्य किया था। क्रमशः 1986 ई. से 1992 ई. तक अफ़ग़ानिस्तान के लोकतांत्रिक गणराज्य के एक दल के नेता और साथ ही 1987 ई. से अप्रैल 1992 ई. में उनके इस्तीफे तक अफगानिस्तान के राष्ट्रपति रहे। उन्हें यकायक हटना पड़ा क्योंकि मुजाहिदीन ने काबुल पर कब्जा कर लिया। भारत भागने के असफल प्रयास के बाद, नजीबुल्लाह काबुल में ही रहा गया। डॉ. नजीब तालिबान के हाथों शहर पर कब्जा करने के बाद अपनी मृत्यु के अंतिम चार वर्षों (1992 ई. से 1996 ई.) तक संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में रहे।
26 सितंबर 1996 की शाम को जब आतंकी तालिबान सैनिक नजीबुल्लाह के लिए आए तो वह संयुक्त राष्ट्र के परिसर में ही मौजूद थे। तालिबान ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र की हिरासत से अपहरण कर लिया और उन्हें भयानक यातनाएं दीं, और फिर काबुल की सड़कों के माध्यम से एक ट्रक के पीछे उनके मृत (और, रॉबर्ट पैरी के अनुसार) शरीर को दूर तक खूब घसीटा। उनके भाई, शाहपुर अहमदजई का भी यही हाल किया गया। दोनों भाइयों नजीबुल्लाह और शाहपुर के शवों को अगले दिन आर्ग राष्ट्रपति भवन के बाहर एक ट्रैफिक लाइट के खंभे से लटका दिया गया ताकि जनता को यह दिखाया जा सके कि एक नए युग की शुरुआत हो गई है। तालिबान ने काबुल में नजीबुल्लाह और शाहपुर के लिए इस्लामी अंतिम संस्कार की प्रार्थना को रोका, लेकिन मज़बूरीवश बाद में शवों को रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति को सौंपना पड़ा। जिन्होंने बदले में उनके शवों को पक्तिया प्रांत के गार्डेज़ में भेज दिया, जहां दोनों भाइयों को इस्लामिक अंतिम संस्कार के बाद दफनाया गया। उनके साथी अहमदजई निवासियों द्वारा उनके लिए प्रार्थना की गई।
भारत, जो कि राजीव गाँधी के प्रधानमन्त्री काल से ही नजीबुल्लाह का समर्थन कर रहा था, ने नजीब की हत्या की कड़ी निंदा की और तालिबान के उदय को रोकने के प्रयास में मसूद के संयुक्त मोर्चा/उत्तरी गठबंधन का समर्थन करना शुरू कर दिया था। डॉ. नजीबुल्लाह की हत्या की ख़बर की व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय जगत में निंदा हुई, विशेष रूप से मुस्लिम दुनिया में भी। उस वक़्त संयुक्त राष्ट्र ने एक बयान जारी करके कहा था कि, “नजीबुल्लाह की हत्या की न केवल संयुक्त राष्ट् निंदा करता है बल्कि आने वाले वक़्त में यह अफगानिस्तान को और अस्थिर करेगा।” बाद के पांच वर्षों के तालिबानी शासन में कुछ हुआ भी ऐसा ही। काठमांडू से हाईजैक किया गया एक भारतीय विमान कंधार उतारा गया था। जिसकी एवज में भारतीय जेलों में बंद कई दुर्दान्त आतंकवादी छोड़े गए। जिन्होंने पिछले दो दशकों में भारत को, कश्मीर को अस्थिर करने की कोशिश की। संसद पर हमला हो या मुम्बई ताज होटल पर हमला ये छोड़े गए आतंकवादियों की शैतानी बुद्धि का ही परिणाम था। लादेन द्वारा अमेरिका पर कि गई 2001 की सबसे बड़ी आतंकवादी घटना का प्लान भी कंधार में ही तैयार हुआ था। जिसके बाद अमेरिका ने तालिबानों की क़ब्र खोदने का काम किया। 20 वर्षों तक अफगानिस्तान को अमेरिका की सहयता से लोकतान्त्रिक तरीक़े से चलाया गया मगर दुःखद की अमेरिकी सैनिकों के हटते ही तालिबान फिर से वहाँ आ धमका है। इसके बाद से ही अफ़ग़ान में फिर से डर का माहौल है। लोग देश छोड़कर भाग जाना चाहते हैं।
अफगानिस्तान के अनुसंधान केंद्र ने अपनी रिपोर्ट में 2016 ई. को, नजीबुल्लाह की मृत्यु की 20वीं वर्षगांठ पर पाकिस्तान को ही दोषी ठहराया था। रिपोर्ट में यह दावा करते हुए कि नजीबुल्लाह को मारने की योजना पाकिस्तान में ही बनाई गई थी।
पिछले बरस 1 जून 2020 को, अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब द्वारा गार्डेज़ में उनकी कब्र पर जाने के बाद, नजीबुल्लाह की विधवा फताना नजीब ने कहा कि उनके लिए एक मकबरा बनाने से पहले, सरकार को पहले उनकी हत्या की जांच करनी चाहिए।
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