नज़्म
ऐसा नहीं कि रुकना गवारा कभी न था
हमको मगर किसी ने पुकारा कभी न था ।
हम खामखां ही इश्क में जिसके डूबे रहे
उसने जिगर में हमको, उतारा कभी न था।
जिस बेवफा की चाह में,खुद को भुला दिया
वो सदा रहा बन ग़ैर का,हमारा कभी न था।
छोड़ा सनम तुमने जहां,था मझधार में भंवर
नज़दीक सिर्फ मौत थी, किनारा कभी न था।
हम मांग लें जिससे खुशी, कभी दोनों हाथ उठा
था आसमां नीलम मगर,टूटा सितारा कभी न था।
सुन इश्क ने मुझको नहीं किसी काम छोड़ा
कर्म योगी था मैं तो नीलम,नकारा कभी न था।
नीलम शर्मा ✍️