नज़र
हजार रंग उड़े थे उसके
अजब सी लाली छाई थी
जब वो मुझसे मिलने आई थी
आंखों में उसके नूर थी
पर मुझसे काफी दूर थी
नज़रे मुझे ही ढूंढ रही थी
मैं हर बार छुप रहा था
अब जी उसकी मचल रही थी
और धड़कने तेज चल रही थी
हाय क्या उफान सा था
बाहर एक तूफान सा था
दुर्गेश साहू