नज़र उतार देना
मेरी उलझी हुई लटों को हाथों से संवार देना।
ना नज़र लगे जमाने की, नज़र उतार देना।।
कभी खत्म ना हो जीवन में इतना प्यार देना।
ना नज़र लगे जमाने की, नज़र उतार देना।।
पड़ती हूँ जब अकेली, तब ढूंढ़ती सहारा।
तेरे बिन नही है चलना एक कदम भी गंवारा।
आदत हो या जरुरत या इश्क़ हो हमारा।
मुझे छोड़कर न जाना, जीवन में तुम दुबारा।
जो मांगू कुछ कभी तो, मेरे सरकार देना।
ना नज़र लगे जमाने की, नज़र उतार देना।।
कभी खत्म ना हो जीवन में इतना प्यार देना।
ना नज़र लगे जमाने की, नज़र उतार देना।।
जीवन में तेरा साथ ही, अनमोल है पिया।
तुम हो धड़कते दिल में बनकर मेरा जिया।
मेरा घर बना अयोध्या, तुम राम हो पिया।
वामांगी मैं तुम्हारी, बनकर रहूँ सिया।
जो मांगू चाँद-तारे, तुम मुझपे वार देना।
ना नज़र लगे जमाने की, नज़र उतार देना।।
कभी खत्म ना हो जीवन में, इतना प्यार देना।
ना नज़र लगे जमाने की, नज़र उतार देना।।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️