नज़रों की रेंती पर “बेटी”
गुजरी रात कहा मन ने…….
कोहरे की चादर ओढे़
एक और सुबह कल फिर होगी
गणतंत्र मनाया जायेगा
दिल्ली की सह भगवा होगी
गिद्ध दरिंदों मे घिर कर
एक बेटी फिर रुसवा होगी
वहीं जश्न वाली दिल्ली से
बेटी कोई अगवा होगी
विजय चौक से लाल किले तक
बेटी का करतब होगा
मगर कहो सम्मान मेरा अब
सच्चे दिल से कब होगा
दीवारों पर छाप दिया और
करते है बेटी बेटी
बुरी नियत से हाथ फेरते
नज़र लिये रेंती रेंती
कल फिर मोदी के भाषण मे
बेटी ही बेटी होगी
अर्धविक्षिप्त कई टुकड़ों मे
लाश कोई लेटी होगी
निश्चय ही वो मां होगी
पत्नी या बेटी होगी
नहीं चाहिये सौगातें
वादों की और बातों की
हमे सुरक्षा मिल जाये बस
भयावनी उन रातों की
करणी सेना वालों को
कोई जाकर समझाये तो
राजपूत रजवाड़ों से
फिर कोई बाहर आये तो
सती हुई मईया की खातिर
तलवारें जो खींच रहे
हर दिन लुटती बेटी की
इज्जत भी कोई बचाये तो……
#प्रियंका मिश्रा_प्रिया
अलीगढ़