” नज़रीया से मानसिकता का सफर “
हैलो किट्टू ❗
आज मैं तुम्हें ऐसे अनुभव के बारे में बताना चाहती हूं जो बहुत समय से मैंने अनुभव करते आ रही हूं ।
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” सब तो नहीं पता मुझे परन्तु थोड़ा पता है मुझे ,
जिंदगी या हालात से नहीं परन्तु तेरे नज़रीया से खता है मुझे । ”
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ज्यादातर हमें हमारी घटना से जाना जाता है घटना के परिणाम से नहीं । जैसे ?
1. अगर किसी लड़की के साथ ” बलात्कार ” हुआ हो तो , भविष्य में अगर वो ही हो तो उसे देखते ही हमारे जुबान से यही बात निकलती है कि ये वही लड़की है जिसके साथ बलात्कार हुआ था । या उसके परिवार के किसी सदस्य को देख कर बोला जाता है ये उसी लड़की के परिवार के सदस्य हैं जिस लड़की के साथ बलात्कार हुआ था।
2. अगर किसी के साथ ” एसिड अटैक ” (अम्ल सेकाआक्रमण / हमला ) जैसी घटना हुई हो । उसे लड़के / लड़की को देख हमारे मुंह से यही निकलता है कि यह वही है जिसका चेहरा (शरीर का अन्य भाग) अम्ल फेंक कर जला दिया गया था ।
3. किसी लड़की ने अगर दहेज या किसी अन्य कारणवश अपना ” विवाह का रिश्ता तोड़ा ” हो तो उसे देखते ही हम यही बोलते हैं ये वही हैं जिसकी शादी होने वाली थी परन्तु टूट गई ।
4. अगर किसी लड़के की ” सरकार नौकरी ” नहीं है या उसके पास कोई डिग्री नहीं है तो हम यही बोलते हैं कि देखो वो तो निठल्ला है या नालायक है । उसकी औकात ज्यादा नहीं है । जो खेती या साधारण सी ओहदे की नौकरी करता है।
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ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जिनका होना तो कुछ क्षण का है लेकिन उसके तकलीफ़ से निकलना हमारे मानसिकता पर और हमारे आस-पास के वातावरण पर निर्भर करता है ।
ऐसा कोई क्यों नहीं बोलते हैं ❓
– देखो ये वही लड़की या लड़की के परिवार के सदस्य हैं जिनके साथ गलत तो हुआ लेकिन इसी के कारणवश बलात्कारी को फांसी की सजा, सरे आम नंगा घुमाने या जिंदा जलाने जैसी सजा का कानून होगा ।
– देखो ये वही लड़की / लड़का है जिनका प्राकृतिक सौंदर्य तो बिगड़ा लेकिन इन्होंने एसिड को खुले आम बिकना बंद कराया ।
– देखो ये वही हैं जिसकी वजह से दहेज की मांग करने वालों के मुंह पर शर्मिंदगी का तमाचा मारा है । ताकि आने वाले समय में फिर किसी पिता को अपने बेटी के विवाह के लिए , उसकी खुशियों के लिए किमत ना चुकानी पड़े । उसकी खुशियां उसके हक़ की मिले ।
– देखो ये वही लड़का है जो बिना किसी दिखावे , बिना रूपया – संपत्ति के लालच के मेहनत से अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है ।
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– पता नहीं क्यों हम अपनी वास्तविकता भूल भेड़ चाल क्यों चल रहे हैं ।
– आधुनिकता और विकास के दौर में अपनी विकासशीलता को नज़र अंदाज़ करते जा रहे हैं ।
– आसमान को छूने के जिद्द में बहुतों के भावनाओं की निंदा किए जा रहे हैं ।
– वाहा वाही की ख्वाहिश में खुद के विवेक को भ्रमित किए जा रहे हैं ।
– हम तो अपनी उड़ान के लिए दूसरों के पंख कुतरते जा रहे हैं ।
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? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली