नजर लगी हा चाँद को, फीकी पड़ी उजास। नजर लगी हा चाँद को, फीकी पड़ी उजास। नेह धरा का भूलकर, बना राहु का ग्रास।। © सीमा अग्रवाल मुरादाबाद