नजर का शिकायत….
नज़र अक्सर शिकायत आजकल करती है दर्पण से,
थकान भी चुटकियां लेने लगी हैं तन से और मन से,
कहां तक हम संभाले उम्र का हर रोज गिरता घर,
तुम अपनी याद का मलबा हटाओ दिल के आँगम से,
नज़र अक्सर शिकायत आजकल करती है दर्पण से,
थकान भी चुटकियां लेने लगी हैं तन से और मन से,
कहां तक हम संभाले उम्र का हर रोज गिरता घर,
तुम अपनी याद का मलबा हटाओ दिल के आँगम से,