नजर कातिल दिखाई दे
जिधर घूमे नज़र तेरी उधर #महफ़िल दिखाई दे।
हुनर पे जाँ लुटी सबकी, नज़र कातिल दिखाई दे।।
हमीं बेचैन हैं बैठे, #तन्हाई क्यूँ चली आई।
हमें तो प्रेम-सागर में, नहीं साहिल दिखाई दे।।
वफ़ा के नाम पर साकी, पिलाते #बेवफ़ाई गम।
सुना, बेखौफ़ बस्ती में, चलन शामिल दिखाई दे।।
नई #आदत यही आई, दफन सब राज सीने कर।
दगा देते उसी को, पाक जिसका दिल दिखाई दे।।
लिखा ये क्या मुकद्दर में, जवाँ होकर #तड़पना जय।
पहर हर रात का दूजा, अगन तिल-तिल दिखाई दे।।
संतोष बरमैया #जय