नजर अपनी अपनी
सबकी सोच की अपनी कहानी
ग्लास आधा भरा है
या आधा खाली
सबके नजरिए की अपनी जुबानी ,
बेटी का दिल ससुराल में छलनी
तो बहुत बुरा लगता है
बहू का कभी सोचा ही नही
बहू पराई है बस बेटी अपनी ,
हर बात के सही गलत दो पहलू होते हैं
लेकिन हम सही को नकारते
अपने हिसाब से गलत को सकारते
और ऐसा कर हम सब अपना आपा खोते हैं ,
चलो गिरा दें इस गलत नजर के जहर को
मिटा दें हर एक सोच कलुष की
देखें बस हर बात को सही ढंग से
आओ बदल दें मिल कर ऐसी हर नजर को ।
स्वरचित , मौलिक एवं अप्रकाशित
( ममता सिंह देवा , 03/09/2020 )