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28 Aug 2016 · 1 min read

नजरें

माँ मैं आज के बाद घर से बाहर नहीं जाऊँगी,
कारण मत पूछना मुझसे मैं बता नहीं पाऊँगी।

फिर भी तुम सुनना ही चाहती हो तो सुनो माँ,
आज अपना दर्द मैं तुम्हें खोलकर बताऊँगी।

डराती है मुझे लोगों की गंदी नजरें माँ बाहर,
कैसे खुद को इन गंदी नजरों से मैं बचाऊँगी।

कपड़ों को चीरकर मेरे तन को छूती हैं नजरें,
क्रोध के ज्वालामुखी को कब तक दबाऊँगी।

मेरे चेहरे पर टिकी नजरें हटा नहीं पाती हूँ,
छाती पर गढ़ी नजरें बोलो मैं कैसे हटाऊँगी।

कुछ नजरें टिकी रहती हैं पेट और नाभि पर,
अपने जिस्म को उन नजरों से कैसे छिपाऊँगी।

कूल्हों पर टिकी रहती हैं नजरें सरेआम माँ,
नजरों के कारण कभी मरी हुई घर आऊँगी।

जाँघों पर टिकी नजरें आत्मा को चीर देती हैं,
तुम्हें नहीं तो किसे आत्मा के घाव दिखाऊँगी।

मेरी जान ले लेंगी ये शैतान नजरें किसी दिन,
आप बीती एक दिन सुलक्षणा से लिखाऊँगी।

©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 734 Views
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