नजरिये नजरअंदाज नहीं होते
वो शासक ही क्या ?
जिससे प्रजा नाराज न हो ?
उठे विरोध
और भी ज्यादा ?
जो लगे काम हुये !
और भी ज्यादा !
जो माँगे
रोटी दिखाकर
उससे भी छीन लें
अपने सगे चारों में बाँट दे !
किसे मालूम नाइंसाफी हुई !
इसी पर और अधिक जोर दें !
नजर नजरिये को
नजरअंदाज करती है !
हो जायेंगे लोग आदी !
आज नहीं तो कल !
फिर चाहे जो नाम दें !
नजर से नजरिए नहीं.
नजर से नजरअंदाज,
नजरिया तो चिंतन है
मंथन है मनन है .
सगे संबंधियों से परे है