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4 Nov 2024 · 1 min read

नग़मा- लिखूँ जो भी वही नग़मा…

लिखूँ जो भी वहीं नग़मा शरद की धूप हो जाए।
लगे ऐसा तेरी सूरत के ये अनुरूप हो जाए।।

गुलाबी लब घनी ज़ुल्फ़ें इशारों में क़यामत है।
खिले मधुबन सरीखी यार तुझमें नित शराफ़त है।
तुझे रानी बनाकर दिल मेरा इक भूप हो जाए।
लगे ऐसा तेरी सूरत के ये अनुरूप हो जाए।।

तेरे मद बोल बारिश-से तेरी ये चाल मतवाली।
लचक शहतूत जैसी है कसक़ है शहद की प्याली।
तुझे छूकर सुना लोहा कनक का रूप हो जाए।
लगे ऐसा तेरी सूरत के ये अनुरूप हो जाए।।

तराशी देह रब ने ये किया रेशम तुझे जानाँ।
जला ख़ुद देखकर तुमको ख़ुदा भी फिर सुनो जानाँ।
तुझे मृदु जल कहे दिल और ख़ुद इक कूप हो जाए।
लगे ऐसा तेरी सूरत के ये अनुरूप हो जाए।।

आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित नग़मा

शब्दार्थ- भूप- राजा, कूप- कुआँ, कनक- सोना(धातु)

Language: Hindi
1 Like · 95 Views
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