नखरे
विषय नखरे
उल्टे वसन देह धारण कर,
घूमे आंगन द्वार ।
देख छवि जब आई हंसी,
रूठ गई सुरनार।
भृकुटी तान कर बैठ गई,
सतवंती गुलनार।
क्षुधा उदर की बढ़ रही,
दुखी सारा घरवार।
आज श्रृंगार उसने किया,
हंस रहा संसार।
आंख में अंजन, दांत में मंजन मटक रही मजेदार।
भूख पेट की सता रही,
नहीं माने सरकार।
नखरे दिखा- दिखा रो रही ,
बहाए आंसू जार- जार।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश