” नखरीली शालू “
बैंगलोर में रहने वाली शालू बहुत ही घमंडी स्वभाव की थी। वह अपनी नाक पर मक्खी तक को नहीं बैठने देती थी। उसका पति हिमांशु काफी पैसे वाला था। वह अपने पति से बहुत प्यार करती थी और कभी कभी इतराने के चक्कर में लड़ाई भी करती थी। शालू को बड़ी बड़ी हांकने और झूठी बडाईयों का बहुत शौक था। सारा दिन सहेलियों से अपने परिवार और मायके वालों की प्रशंसा करती रहती थी। हिमांशु उसे बहुत समझता कि पैसे का घमंड नहीं करना चाहिए, लेकिन उसके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी। शाम को पार्क में घूमने जाती तो वहां भी ऐसे ही डींग हांकती रहती थी। शालू को किटी पार्टी में जाने का बहुत शौक था। दोनो अपनी जिंदगी में व्यस्त रहते थे। हिमांशू दिन भर कंपनी का काम संभालता। शालू दिन भर किटी पार्टी और सजने संवरने में लगी रहती। पति के पैसे के घमंड में उसने आगे की पढ़ाई भी छोड़ दी थी। आस पड़ोस में सभी उसे घमंडी कहते थे। एक दिन शालू को किसी काम से बाजार जाना था और गाड़ी ड्राइवर छुट्टी पर था। चूंकि शालू गाड़ी चलाना नहीं जानती थी तो उसने सिटी बस से जाना उचित समझा। सार्वजनिक बस में आज शालू पहली बार यात्रा कर रही थी। उसकी बगल वाली सीट पर एक महिला बैठी थी, जो रंग रूप में बहुत सुंदर दिखाई दे रही थी। अपनी आदत के अनुसार शालू ने उसके साथ बोलना शुरू किया। बातों बातों में उसने बताया कि उसका नाम शर्मिला है। थोड़ी बहुत ही बात हो पाई थी कि शालू का स्टैंड आ गया। वह जाते जाते शर्मिला से मोबाईल नम्बर लेकर बाय बोलकर निकल गई। थोड़े दिन बाद शालू ने शर्मिला को फ़ोन लगाया तथा बातें करने लग गई। शर्मिला ज्यादातर व्यस्त ही रहती थी, तो बहुत कम बातें हुआ करती थी। शालू ने कभी शर्मिला से उसके परिवार और व्यवसाय के बारे में पूछा ही नहीं। शर्मिला बेवजह अपना समय खराब न करके अपने बच्चों और अपनी आई ए एस की पढ़ाई पर ध्यान देती थी। जितने समय बातें होती शालू तो बस अपनी तारीफ़ के पुलिंदे बांधती रहती। मन ही मन शर्मिला की सुंदरता से ईर्ष्या करती तथा उसकी तड़क भड़क भरी स्टाइल से उसकी तरफ़ खींची चली जाती। करवा चौथ का व्रत आने ही वाला था, शालू तैयारियों में जुटी हुई थी। व्रत के दिन हिमांशु ने घर जल्दी आने का वादा किया था। दोपहर में शालू हिमांशु का उपहार खरीदने के लिए ड्राइवर को लेकर बाजार चली गई। रास्ते में शालू ने देखा कि उसी बस स्टैंड पर शर्मिला सज धज कर खड़ी थी। दरअसल शर्मिला को भीड़ वाली जगह गाड़ी से जाना पसंद नहीं था, इसलिए वह लॉकल बस से यात्रा करती थी। उसको देखते ही शालू ने मन ही मन सोचा कि अपने के साथ पार्टी में जाने के लिए सजी हुई है और इसके पास गाड़ी नहीं है, इसलिए बस स्टैंड आई है। शालू ने उसके पास कार रोक ली तथा पूछा कि उसे कहां जाना है। शर्मिला का गंतवय स्थान रास्ते में ही था तो शालू ने उसे गाड़ी में बिठा लिया। रास्ते में दोनों ने खूब बातें की। बातों बातों में शर्मिला का घर आ गया तो वह शालू को अपने साथ जाने के लिए कहने लगी। गाड़ी इतने बड़े घर के सामने खड़ी थी कि शालू की आंखे फटी की फटी रह गई। शर्मिला ने कहा कि अंदर चलो कुछ खाकर वापिस जाना। शालू उत्सुकतावश उसके साथ चल दी। महल जैसे घर को देखकर शालू मन ही मन सोच रही थी कि शर्मिला कितनी सीधी महिला है। बिलकुल भी पैसे का घमंड नहीं है। सामने से शर्मिला के बच्चे आए और पैर छूकर शालू को प्रणाम किया। घर के नौकर तरह तरह के पकवान लेकर आवभगत में खड़े थे। सपने से बाहर आकर शालू जल्दी से नाश्ता करके घर के लिए निकल गई। आज शालू अपने आप में बहुत खुश नजर आ रही थी। शाम को हिमांशु घर आया तो शालू ने कहा कि आज तो शर्मिला की सादगी देखकर मेरा मन परिवर्तित हो गया। किसी ने सच ही कहा है कि सादगी से बढ़कर कुछ नही है। हिमांशु ने कहा चलो शुक्रिया भगवान का जो शर्मिला रूपी फरिश्ते को मेरी नखरीली शालू को शालीन शालू बनाने के लिए धरती पर भेजा।