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15 May 2020 · 2 min read

नकारात्मक परिस्थिति में सकारात्मक अभिव्यक्ति

नकात्मक मन और भावनाएं हमारी जरूरतों की पूर्ति ,हमारे आदर्श और हमारी सकारात्मक भावनाओं में कमी लाती है। हमारी सकारात्मक सोच हमें खुशी और सफलता की ओर ले जाती है जबकि नकारात्मक सोच हमें दुखी, उदास, तनावपूर्ण और जीवन से छुटकारा पाने के विचार की ओर ले जाती है। सकारात्मक सोच ही हमें बड़ी से बड़ी मुश्किलों से लड़ने और जीतने की शक्ति दे सकती है। हमारी जीवन शैली और दृष्टिकोण बदल सकती है।
आज का दौर महान संकट का दौर है। लेकिन हमें पूरी सकारात्मकता के साथ इसका सामना करना है। कहा भी गया है ,’ आप जो भी विचार मन में दोहराते हैं, जिन्हें आप मन मे स्थिर कर लेते हैं, पूरी कायनात एकजुट होकर इसे आपको देने के लिये बाध्य हो जाती है।’
इसलिये अगर बैठे बैठे कोरोना और इसके दुष्प्रभावों को सोच सोच कर भयभीत होते रहेंगे तो निश्चित तौर पर इस कोरोना को बढ़ावा ही देंगे।और आजकल यही हो रहा है। लोग इसी नकारात्मक सोच के साथ अवसाद का शिकार होने लगे हैं। इसको यहीं रोकना अति आवश्यक है। नहीं तो इसके भी भयानक दुष्परिणामों को भोगना होगा । आज आवश्यकता है सकारात्मक सोच की। हमें ये सोचना होगा कि हम बिल्कुल स्वस्थ हैं और रहेंगे, हम पर कोरोना का कोई असर न है न होगा, हम स्वस्थ रहेंगे , हमारे अपने भी स्वस्थ रहेंगे , हम वीरता से समझदारी से इसका सामना करेंगे, इसको हर हालत में हमें हराना ही है आदि आदि। हमारी ये सकारात्मक सोच निश्चित ही बदलाव लाएगी। अवसाद से निकालकर एक नई ऊर्जा और सकारात्मकता का सृजन करेगी। और नकारात्मकता को पूर्णतयः खत्म कर देगी।
बार बार साबुन से या सनेटाइज़र से हाथ धोते समय अपनी पसंद का कोई गीत या कविता गुनगुनाये। हाथ धोने में भी आनन्द आने लगेगा। सुबह थोड़ा सा व्यायाम, योग आदि अपनाएं। शुरू में थकावट जरूर होगी लेकिन बाद में अपनी सुंदर काया और चेहरे की चमक देखकर आपको कितनी प्रसन्नता होगी इसका अनुमान आप तभी लगा पाएंगे। यदि आसपास कोई गरीब बेसहारा व्यक्ति है तो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझते हुए उसकी मदद कर दें। किसी को जरा भी खुशी देकर जो खुशी मिलती है वो अद्भुत होती है। हम अपने परिवार के साथ रह रहे हैं वो भी इतने लंबे समय के लिए।ये पल शायद ज़िन्दगी में कभी नहीं मिलते। ये अवसर भी कोरोना ने ही हमें दिया है। यानी बुराई के साथ ये एक अच्छाई भी हुई। हम अपने घर में सुरक्षित और स्वस्थ हैं, ये भी बहुत बड़ी बात है।और सबसे बड़ा काम अफवाहों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देना है।हर पहलू पर ध्यान देते हुए अपना खुद का दृष्टिकोण रखना है। मीडिया से भी यथासम्भव बचना होगा। ये लोग बातों को तोड़ -मरोड़ कर बढ़ा- चढ़ा इस तरह बतातें हैं कि भ्रमित ही कर देते हैं।
कहने का तात्पर्य सिर्फ ये है कि जो हो रहा है या होना है वो तो होगा ही लेकिन हम सकारात्मक सोचें, सकारात्मक बोलें, सकारात्मक ही देखें। यही है “नकारात्मक परिस्थिति में सकारात्मक अभिव्यक्ति”।

15-05-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

Language: Hindi
Tag: लेख
6 Likes · 2 Comments · 688 Views
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