*नकली दाँतों से खाते हैं, साठ साल के बाद (हिंदी गजल/गीतिका)*
नकली दाँतों से खाते हैं, साठ साल के बाद (हिंदी गजल/गीतिका)
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( 1 )
नकली दाँतों से खाते हैं ,साठ साल के बाद
हलवे के ही गुण गाते हैं ,साठ साल के बाद
( 2 )
सिर के बाल सफेद सूचना, देते बूढ़ेपन की
काली मेहंदी ले आते हैं ,साठ साल के बाद
( 3 )
मजा जिंदगी का रहता है,जब तक यौवन जिंदा
रोग बीसियों लग जाते हैं ,साठ साल के बाद
( 4 )
कई साल से झूठ बोलकर ,बूढ़ापन यों रोका
सबको पचपन बतलाते हैं ,साठ साल के बाद
( 5 )
वैसे तो यह सच है होती ,उम्र मनुज की सौ की
लेकिन कितने जी पाते हैं ,साठ साल के बाद
( 6 )
हुए रिटायर लेकिन मन के ,घोड़े दौड़ रहे हैं
छैल-छबीले कहलाते हैं ,साठ साल के बाद
( 7 )
चाहे बुरा लगे या अच्छा, लेकिन यह तो सच है
लोग हमेशा सठियाते हैं ,साठ साल के बाद
( 8 )
रह जाती हैं आत्मकथाएँ ,बस बूढ़ों की पूँजी
केवल उन को दोहराते हैं ,साठ साल के बाद
( 9 )
सबकी अपनी जीवन-शैली ,सबके रंग अलग हैं
कुछ खिलते कुछ मुरझाते हैं ,साठ साल के बाद
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रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 615451