“नए शोध में”
ये वीरानियां परेशां कर रही हैं,
आंखे खोजती फिर रही जो अब नही है।।
तुम्हे अगर सब आसान लगता हैं,
तो सुनों आवाजों को,जो शमशान से बोल रही है।।
वक्त का ईशारा समझो,गौर करो,
सब बदल गया,प्रकृति संकट में झूल रहीं हैं।।
आदमी से आदमी की लड़ाई कब तक करोगे,
जो अदृश्य है,उसका सामना कैसे करोगे ।।
सदियां गुज़र गईं,आपसी प्रतिशोध में,
संसाधनों को लगाओ नए शोध में।।