नए ज़माने की जीवन शैली
नए ज़माने की जीवन शैली, शायद ही कोई जन समझ पाए |
माताजी ‘ममी’ हो गई, पिताजी जीते जी ‘डैड’ है कहलाए |
पहले मिलते थे सब खुशी से, तीज व त्योहारों में ।
अब मिलना सब भूल गए,बंधे हैं अपने जंजाल में।
भौतिकता के इस युग में, जाने यह कैसा नया विकास है |
जज़्बात गुम हो गए और बस रिश्तों का सिर्फ एहसास है |
डिजिटल क्रांति ने, दिलों की दूरियों को तो है, मिटा दिया |
पर करीबी रिश्तों में गहरी खाई और फ़ासला है ला दिया |
बस सोशल मीडिया पर ही सबके खुशियों के पल कैद हैं |
निजी जिंदगी में भले आपस में चाहे कितने ही मतभेद हैं |
व्हाट्सप्प के जरिये, जाने कितनों से सब आपस में जुड़े हैं |
पर घर पर आते ही, सब के चेहरे बस मोबाइल पर गड़े हैं |
सेल्फी हजारों खींचते हैं, पर किसी के पास देखने का समय नहीं |
बाहर हँसते, बोलते व गाते है, घर पर किसी को फ़ुर्सत नहीं |
पर्सनल स्पेस का कन्सैप्ट, जब से जमाने में है आ गया |
लोगों को एक साथ रहना, देखो परेशानी में डाल गया |
नई स्टाइल को अपना कर, सब देर से सोते और उठते हैं ।
व्यायाम व कसरत को भूलकर, आलसी एवं कमजोर बनते हैं ।
मंदिरों में आने -जाने का समय, अब ले लिया मॉल व बाजारों ने।
रिश्ते – नातों को खोते-खोते, जीते है बस अपने संसार में।
आज सबको घर का खाना, लगता नर्क समान है।
होटल में मिलता बासी खाना, लगता स्वर्ग समान है ।
विकास की बुलंदियों को, आज हमने जरूर है छू लिया |
पर पलटकर देखा नहीं शायद, क्या कुछ हमने पीछे छोड़ दिया |
मोडर्न ! मोडर्न ! सब चीखे जा रहे, मृगतृष्णा के पीछे भाग रहे |
पर किसी ने भी देखा नहीं, क्या खो रहें और क्या पा रहें |