पौष की सर्दी/
तनुस कँप रहा हाड़-मांस का।
उड़ रहा धुआँ गर्म सांस का ।।
प्रखर सूर्य भी लापता हुआ ।
शिशिर में मनुज तापता हुआ।।
ठिठुरती हुई पुष्प की कली।
बिखरकर कहीं वायु बह चली।।
बगल में कहीं ओस गिर रही।
बरफ व्योम से ठोस गिर रही।।
अगर पौष में होंठ हों सिले।
ठिठुरता कहीं आदमी मिले।।
गरम वस्त्र से ढाँकना उसे ।।
मदद अन्न की बाँटने उसे ।
रख-सँवारना घोंसला कहीं।
श्रमिक,दीन को त्यागना नहीं।।
सहज भाव से प्रार्थना यही।
सुखद शांति की कामना यही।।