Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Nov 2019 · 3 min read

नई परम्परा

विजय के पिता जी का स्वर्गवास हो गया था। उनके खानदान में परपरा थी कि स्वर्गवासी के फ ूलों (अस्थियों ) को गंगा जी में विसर्जित किया जाता था। वह अपने पिता की आत्मिक शांति के लिए हरिद्वार चल पड़ा। जैसे ही उसने हरिद्वार की भूमि पर कदम रखे उसके चारों ओर पण्डों की भीड़ जुट गई। हाँ, जी कौन-सी जाति के हो । कहाँ से आए हो ? किसके यहाँ जाओगे ? जैसे-जैसे प्रश्नों की संख्या बढ़ रही थी उसकी दुगुनी गति से पण्डों का हुजूम उमड़ रहा था। पिता की मौत के भार तले दबे विजय ने धीरे से बोलते हुए कहा, मुझे पण्डित गुमानी राम के यहाँ जाना है। उसके बड़े-बुजुर्ग कहा करते थे कि गुमानी राम जी उनके खानदानी पण्डित है।

इतने में भीड़ से एक पण्डे की आवाज आई- आइए मेरे साथ आइए, मैं उनका पौत्र हूँ। में ले चलता हूँ आपको गंगा घाट। आया हुआ पण्डा विजय के हाथों से अस्थि कलश लेकर उनके आगे-आगे चल पड़ा और वो उनके पीछे-पीछे। रास्ते में बतियाते हुए पण्डा बोला- एक हजार रूपये दान करना जी अस्थियां विसर्जित करने के लिए ताकि दिवंगत आत्मा को शांति मिल सके। ऐसी बात सुनकर विजय चौंका तो जरूर पर बिना कुछ कहे उसके साथ-साथ चलता रहा। पण्डे ने फिर से कहा, कहो जी दान करोगे ना। विजय ने उदासी पूर्ण भाव से कहा नहीं, मेरे पास इतने पैसे नहीं है। चलो कोई बात नहीं पिता की सद्गति के लिए कुछ तो दान करना

ही पड़ेगा आपको । कुछ कम कर देंगे, पांच सौ रूपये तो होंगे आपके पास। विजय चुपचाप पण्डे की बात सुनता रहा। लगता है पिता पे तुम्हारी श्रद्धा बिल्कुल नहीं है। तुम्हारा कुछ तो कर्त्तव्य बनता है उनके लिए । जो कुछ था तुम्हारे लिए ही तो छोड़ गए बेचारे । अगर उसमें से थोड़ा हमें दान कर दोगे तो क्या जाता है तुहारा? विजय अब भी चुपचाप सुनते जा रहा था।

गंगा घाट बस बीस कदमों की दूरी पे था। पण्डा अपना आपा खो बैठा था ।बड़े निकम्मे पुत्र हो । मरे बाप की कमाई अकेले खाना चाहते हो। पण्डे की बेतुकी बातें सुनते-सुनते विजय का संयम टूट चुका था। उसने पण्डे के हाथों से अपने पिता का अस्थि-कलश छीन लिया था और पण्डे की ओर देखते हुए बोला- पिता जी मेरे थे। आप कौन होते है उसकी कमाई का हिस्सा मांगने वाले । मेरी श्रद्धा से मैं यहाँ आया हूँ और दान भी अपनी श्रद्धा से ही देता। पर अब तुम्हारी बातें सुनकर तो वो भी नहीं करूंगा और न ही आगे आने वाली पीढ़ियों को करने दूँगा। यह कहकर वह गंगा में उतर गया ।

मैया के जयकारे के संग एक नई परपरा बनाते हुए उसने पिता के फू ल गंगा माँ की गोद में अर्पित कर दिये थे। वहीं दूसरी ओर किनारे खड़ा पण्डा इस नई परपरा से अपना धन्धा चौपट होते देख रहा था।

✍ सत्यवान सौरभ

सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार
ईमेल: satywanverma333@gmail.com
सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045
मोबाइल :9466526148,01255281381
प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह, तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन
प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन !
प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर
संपादन: प्रयास पाक्षिक

सम्मान/ अवार्ड:
1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004
2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005
3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006
4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006
5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007
6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008
7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015
8 आईपीएस मनुमक्त मानव पुरस्कार 2019

Language: Hindi
10 Likes · 10 Comments · 430 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
समय बदलता तो हैं,पर थोड़ी देर से.
समय बदलता तो हैं,पर थोड़ी देर से.
Piyush Goel
*करो योग-व्यायाम, दाल-रोटी नित खाओ (कुंडलिया)*
*करो योग-व्यायाम, दाल-रोटी नित खाओ (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
*सच्चा दोस्त*
*सच्चा दोस्त*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
एक कहानी लिख डाली.....✍️
एक कहानी लिख डाली.....✍️
singh kunwar sarvendra vikram
#नादान प्रेम
#नादान प्रेम
Radheshyam Khatik
लोकसभा बसंती चोला,
लोकसभा बसंती चोला,
SPK Sachin Lodhi
राह मुझको दिखाना, गर गलत कदम हो मेरा
राह मुझको दिखाना, गर गलत कदम हो मेरा
gurudeenverma198
सम्भव नहीं ...
सम्भव नहीं ...
SURYA PRAKASH SHARMA
"तिलस्मी सफर"
Dr. Kishan tandon kranti
जय श्री राम
जय श्री राम
Indu Singh
सोच
सोच
Dinesh Kumar Gangwar
3131.*पूर्णिका*
3131.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हसरतें बहुत हैं इस उदास शाम की
हसरतें बहुत हैं इस उदास शाम की
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
बाल एवं हास्य कविता : मुर्गा टीवी लाया है।
बाल एवं हास्य कविता : मुर्गा टीवी लाया है।
Rajesh Kumar Arjun
चांदनी रातों में
चांदनी रातों में
Surinder blackpen
ठंड
ठंड
Ranjeet kumar patre
Kya ajeeb baat thi
Kya ajeeb baat thi
shabina. Naaz
..
..
*प्रणय*
चवपैया छंद , 30 मात्रा (मापनी मुक्त मात्रिक )
चवपैया छंद , 30 मात्रा (मापनी मुक्त मात्रिक )
Subhash Singhai
आ जाते हैं जब कभी, उमड़ घुमड़ घन श्याम।
आ जाते हैं जब कभी, उमड़ घुमड़ घन श्याम।
surenderpal vaidya
जादू था या तिलिस्म था तेरी निगाह में,
जादू था या तिलिस्म था तेरी निगाह में,
Shweta Soni
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
अर्धांगिनी सु-धर्मपत्नी ।
अर्धांगिनी सु-धर्मपत्नी ।
Neelam Sharma
साँझ- सवेरे  योगी  होकर,  अलख  जगाना  पड़ता  है ।
साँझ- सवेरे योगी होकर, अलख जगाना पड़ता है ।
Ashok deep
मनुष्य अंत काल में जिस जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्य
मनुष्य अंत काल में जिस जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्य
Shashi kala vyas
आप ही बदल गए
आप ही बदल गए
Pratibha Pandey
नया से भी नया
नया से भी नया
Ramswaroop Dinkar
सही कदम
सही कदम
Shashi Mahajan
दिल दिमाग़ के खेल में
दिल दिमाग़ के खेल में
Sonam Puneet Dubey
वैराग्य ने बाहों में अपनी मेरे लिए, दुनिया एक नयी सजाई थी।
वैराग्य ने बाहों में अपनी मेरे लिए, दुनिया एक नयी सजाई थी।
Manisha Manjari
Loading...