नई नवेली नारि
नई नवेली नारि अकेले पावस में ससुराल बसे.
बारिश की बूंदे उसको- सौतन के ही मानिंद डसे.
मेघा के ही साथ रात में, सेज पे दो नयना बरसे.
सजन- अंग- संग मिलन को आतुर, गोरी का अंग -अंग तरसे.
डाढ़ लगे बारिश को विधिना, बिरह में घन जो गरज हंसे.
बारिश की बूंदे उसको- सौतन के ही मानिंद डसे.
बारिश से कुछ धुले ना धुले, आंसू से कजरा धुल जाए.
मेघा के छाने से तन में, पावस में पावक लग जाए.
मन की आग बुझा नहीं पाते, सावन के काले बादल.
ठोकर से क्या बजा कभी है, दुल्हन के झुमका -पायल?
आग लगे उनके दफ्तर को, ताकि वो घर लौट सके.
बारिश की बूंदे उसको- सौतन के ही मानिंद डसे.
——- सतीश मापतपुरी